Friday, 20 July 2012


हिवाळ्यातील सायंकाळी एका वाड्यामंदी ,
जन्म झाला माझा , घडली अनोखी नांदी
शुभेच्छांचा वर्षाव करीत जमली थोर अनेक ,
सासऱ्यांचा ही मान राखेल , आमची गुणी लेक.

ऊब  असो त्या आजीच्या गोधडीची ,
वा  असो गोडवी त्या रात्रीच्या अंगाईची
पुन्हा न येणार ते दिन सोनमोलाचे ,
बालपणातील दडलेल्या त्या निरागस मायेचे .

आठवतेय मला ती खिडकीतील चिऊताई ,
दिसभर मागे धावणारी माझी आई
आठवतेय सुद्धा ती बालवाडीतली गाणी
काही दिवसातच जाणार आपली बाबांची राणी .

चिमुकल्या पायांतील रुणझुण पैंजण ,
वाड्या समोरील ते तुळशीचे आंगण
विरणार आता ती दिवाळी तो दसरा ,
सुरक्षित असा हा वाड्याचा आसरा .

वाड्यात वाढले वाड्यात घडले
भिनला हा वाडा माझ्या प्रत्येक कणात ,
वर्षानुवर्षांच्या ऋणानुबंधांना
तुडवू कसे मी एका क्षणात .



                                                                                 ओंकार दिनेश जुवेकर


Monday, 9 July 2012



 इस शोरशराबी शेहेर में कभी अपनी दिल की धडकनों को तो सुनों ,
मुफ्त में जोलेते हो ये अन्गिनद साँसे ,
 फुरसत में कभी इनको तो गिनों.

कुछ पल की शौहरत के लिए यहाँ रहते हैं सब बेक़रार, 
मेहनत करने वालों को कभी मिलता नहीं कोई करार 
अजी तारीफ करवाने  के लिए भी हमें देने पड़ते हैं पैसे इन दिनों,

मुफ्त में जो ........

कब तक खुदको भगाओगे  इन घड़ियों के काँटों पर,
तरक्की को हासिल करने में गुजर जाएगी ये उमर, 
रोज जो देखते हो ये रंगीन सपने , आज जरा ये दुसरों के लिए भी बुनो ,

मुफ्त में जो ......

बन करो ये मशीनों द्वारा एक दुसरे को रिझाना ,
दिल की बातों को कम्पुटर  से  क्यों बताना ,
उसकी हसीं की तारीफ भी तो कभी उसकी आँखों में आँखे डाल  के करो,

मुफ्त में जो...............

हसीन लम्हों को जोड़ते हुएँ , तुम अपनी जिंदगी सवांरों
दिलों जांसे तुम्हें प्यार करें,  एँसे हमसफ़र बनालों
फिर जिंदगी तो युहीं हसते खेलते कट जाएँगी मेरे दोस्त
अपनी यादों के सहारें फिर उसे निहारों


 मुफ्त में जो लेते हो ये अन्गिनद साँसे,
 फुरसत में कभी इनको तो गिनों,

 इस शोरशाराबी शहर में कभी, अपनी दिल की धडकनों को तो सुनो
                                                                                                                       





                                                                                                                ओंकार दिनेश जुवेकर



Sunday, 1 July 2012

पहिला पाऊस..............


रात्र सरली पहाट झाली
हवेत दरवळला सुगंध वास ,
प्रसन्न अश्या या सुंदर सकाळी 
किरणांचा राजा मात्र अजून उदास .

घरट्यात परतले पक्ष्यांचे थवे 
मेघांची भरली जाहीर सभा ,
पहिल्या थेंबांना मुठीत पकडायला 
बेचैन बळीराजा प्रतिक्षेत उभा .

आतूर  होते सर्वांचे नयन 
होते आतूर  मातीतील प्रत्येक कण ,
थेंबांची पहिली सर येताच 
आला तो अपेक्षित भ्रमानंद क्षण.

पहिल्या पावसाचे पहिले वैभव 
चैतन्याची पहिली लहर,
न्हाहून निघाली संपूर्ण सृष्टी 
नवजीवनाची पसरली बहर.




                                                                                                                -ओंकार दिनेश जुवेकर