Monday, 9 July 2012



 इस शोरशराबी शेहेर में कभी अपनी दिल की धडकनों को तो सुनों ,
मुफ्त में जोलेते हो ये अन्गिनद साँसे ,
 फुरसत में कभी इनको तो गिनों.

कुछ पल की शौहरत के लिए यहाँ रहते हैं सब बेक़रार, 
मेहनत करने वालों को कभी मिलता नहीं कोई करार 
अजी तारीफ करवाने  के लिए भी हमें देने पड़ते हैं पैसे इन दिनों,

मुफ्त में जो ........

कब तक खुदको भगाओगे  इन घड़ियों के काँटों पर,
तरक्की को हासिल करने में गुजर जाएगी ये उमर, 
रोज जो देखते हो ये रंगीन सपने , आज जरा ये दुसरों के लिए भी बुनो ,

मुफ्त में जो ......

बन करो ये मशीनों द्वारा एक दुसरे को रिझाना ,
दिल की बातों को कम्पुटर  से  क्यों बताना ,
उसकी हसीं की तारीफ भी तो कभी उसकी आँखों में आँखे डाल  के करो,

मुफ्त में जो...............

हसीन लम्हों को जोड़ते हुएँ , तुम अपनी जिंदगी सवांरों
दिलों जांसे तुम्हें प्यार करें,  एँसे हमसफ़र बनालों
फिर जिंदगी तो युहीं हसते खेलते कट जाएँगी मेरे दोस्त
अपनी यादों के सहारें फिर उसे निहारों


 मुफ्त में जो लेते हो ये अन्गिनद साँसे,
 फुरसत में कभी इनको तो गिनों,

 इस शोरशाराबी शहर में कभी, अपनी दिल की धडकनों को तो सुनो
                                                                                                                       





                                                                                                                ओंकार दिनेश जुवेकर



3 comments:

  1. mere dost ke in haseen lafzon ko tum bhi suno....
    muft me jo........
    waah waah jeet liya dost!!!

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  2. kya baat,kya baat.. kya baat!!!!1

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